समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /126 मई 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
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रविवार : 31.05.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
हरकीरत हीर
01.
मेरी नज़्म
अंग नग्न नहीं रखती
ओढ़े रखती है शालीन दुशाला
मगर फिर भी लोग उसे
बदमाश कहते हैं
क्योंकि...
वह रखती है अपने पास
तेज धार की क़लम...
02.
हर मशवरे पे
दुत्कार दी जाती थी
तुम होती कौन हो..?
इतना आसान नहीं था
यूँ नज़्म का
पत्थर बन जाना ...
03.
कई हिस्सों में
बिखेर दिया था इन रिश्तों ने
अब सारे हिस्सों को समेटकर
मेरी नज़्म
बस...
मुहब्बत होना चाहती है...
04.
गर तुमने
कभी दिया होता
रेखाचित्र : अनुभूति गुप्ता |
इक मकां
मेरी नज़्म यक़ीनन उसे
05.
तुम्हें ..
यकीं हो न हो
मेरी नज़्म में लिपटा
हर मोहब्बत का शब्द
तेरी ही चौखट पर आकर
रुकता रहा ....
- 18, ईस्ट लेन, सुंदरपुर, हाउस नं. 05, गुवाहाटी-5, असम/मो. 09864171300
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