Sunday, May 10, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /123                                     मई  2020

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रविवार  : 10.05.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


वंदना गुप्ता 






01.
तुम मुझे कोई रास्ता मत देना

वो ‘तुम’
कोई भी हो सकते हो
चाहे पुरुष, ईश्वर, सहयात्री या प्रतिद्वंदी

पानी खोज ही लेता है निकासी के मार्ग...


02. 

मौन की भारी भरकम शिला तले
मन रूपी चींटी बिलबिलाती
न जीती न मर पाती...
शुष्क आहों पर ही उम्र बिताती
मगर ये रहस्य न जान पाती
जब शिलाओं के मौन न कभी टूटे
तो भला मौन की शिला कोई कैसे तोड़े ?   

03. 

कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष तक की यात्रा है ये
आकाशगंगाओं ने खोल लिए हैं केश 
और चढ़ा ली है प्रत्यंचा
खगोलविद अचम्भे में हैं!

04.

वो मेरे हाथ से
रीना मौर्या मुस्कान 

लकीरें चुरा ले गया
देखो कोई नज़्म
आज उतरी ही नहीं
हथेली पर फूल बनकर

रेखाओं के बिना
कुमकुम को तरसती
किसी विधवा की सूनी माँग-सी
सपाट हथेली नहीं जानती
बंजर जमीन पर
पौध नहीं उगा करती

  • डी-19, राणा प्रताप रोड, आदर्श नगर, दिल्ली-110033/मो. 09868077896

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