समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 70 मई 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 05.05.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
महावीर रवांल्टा
01. कमीज
मैंने पसीने से तर
कमीज को
निचोड़ना चाहा
लेकिन क्या देखता हूँ कि
खून का
एक-एक कतरा निकल रहा है
02. चाहत
मैं भौंरा बनकर
फूलों पर
मंडराना चाहता था
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
मगर/चाहने तक
फूल मुरझा चुके थे
03. प्रेम
बढ़ती हुई घास की तरह
वे परस्पर
उलझते गए
लेकिन बड़े होते ही
पेड़ों की तरह
अलग-अलग सीधे होने लगे
- ‘सम्भावना’ महरगॉव, पत्रा.- मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185, उत्तराखण्ड
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