समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 71 मई 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 12.05.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुरेश सपन
01.
पहले पत्थरो से लड़ी
फिर उनकी रज से,
नहीं लड़ पाई
आदमी के लालच से
विष्टा से भरी/अब
नदी बहुत बीमार रहती है
पर देखो जिजीविषा उसकी-
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
नदी अब तक बहती है।
02.
कहीं हवा बनायी जाती है,
और कहीं बिगाडी जाती है।
यह कैसा खेल
खेल रहे हैं हम
अपनी ही साँसों के साथ।
- डॉ. सुरेश पाण्डेय, प्रधान वैज्ञानिक, विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, उ.खंड /मो. 9411333269
No comments:
Post a Comment