समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 64 मार्च 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 24.03.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. शहर
तन-मन
शहर बन गया
अंदर से छलनी
रूंघता ,रोआं -रोआं
बाहर,मेकअप आडम्बरों का
अंत मे
धुल गया।।
02. पीले हाथ
हो गए पीले हाथ
बिटिया पराई हो गई
काश!
पीले हाथों की रस्म न होती
बेटी मेरे घर ही
सरसों का फूल होती।।
- 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 079862 49984
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