समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-04/368 जनवरी 2025
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
विष्णु सक्सेना
01. डर
टूट गया
एक शीशा और,
बिखर गया काँच-
धरती की चादर पर।
कौन समेटे?
सबको
अपने-अपने
हाथों का डर है!!
02. शायद
पहाड़ी पर
चढ़ती बस के
अधजले धुएँ जैसी
हैं- हमारी इच्छाएँ।
इसीलिए शायद
जीवन की गाड़ी
कुछ भारी चलती है!!
03. कैक्टसी हवाएँ
भगवा के रंग रेखाचित्र : रमेश गौतम
आसमान की लाली
और बर्फ की सफेदी के
प्रश्न पर
बँट गये लोग।
उनके बीच
भर आया आकाश,
उसमें बहने लगी
कैक्टसी हवाएँ-
भगवा के रंग और बर्फ की
सफेदी के प्रश्न पर!!
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