Sunday, February 16, 2025

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-04/372                          फरवरी 2025


क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 16.02.2025
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



अनीता सैनी



01.

हवा के साथ

सरहद लाँघ जाते हैं बादल

अब अगर कुछ दिनों में 

ये नहीं लौटे

तुम देखना!

जेष्ठ कहर बरपाएगा 

बालू छाँव तकेगी 

पौधे अंबर को

और मेरे दिन-रात तपेंगे 

तुम्हारे इंतज़ार में।


02.

निशीथ काल में

धरती उठी  

कुछ अंबर झुका 

मौन में झरता समर्पण

चातक पक्षी ने गटका 

फूल बरसाती हवा  

पशु-पक्षियों ने

ध्यानमग्न हो सुना 

तब इंसान गहरी नींद में था।


03.

छायाचित्र : उमेश महादोषी 

कभी-कभी

कोई वज़ह नहीं होती रूठने की 

फिर भी महीनों तक बातें नहीं होती

रास्ते भी जाने-पहचाने होते हैं

पीर पैरों की गहरी रही होगी कि 

वे उधर से गुजरते नहीं हैं।

  • दूसरी फ्लोर, बी-118, करधनी स्कीम, कलवार रोड, झोटवारा, जयपुर-302012, राज./मो. 06350497759 

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