समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /159 जनवरी 2021
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 17.01.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 17.01.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
आने दो रोशनी
अँधेरे में कोई भी चेहरा
नज़र नहीं आता।
02.
ढेर जंगल बीच
(जीवित नहीं, मृत )
अकेला मन और
धूल फाँकती इच्छाएँ
बियाबान में खड़ा ज्यों बहेलिया!!
03.
कैसा ये बाँध था
अचानक टूटा
मैं जाग भी न पाई
कि, मुझे रातों-रात
शहर से बाहर डाल दिया!!
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
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