समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /157 जनवरी 2021
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 03.01.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 03.01.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
नारायण सिंह निर्दाेष
01. मसअले
सभी मसअले
यदि हों
तो सिर्फ़ दिल के;
ताकि/वो सुलझ जाएँ
थोड़ा-बहुत
ना-नुकुर करने के बाद।
बाद इसके
फिर कुछ भी
न रह जाए याद।
02. मौत पर विलाप
मैं नहीं चाहता
कि अपनी या किसी और की
मौत पर
करूँ विलाप
रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी |
इसलिए मैं
अमुक व्यक्ति के
शव आसन में लेटा होने की बात
कहकर लौट आया हूँ।
भीड़ मुझे तलाशने में जुटी है।
- सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. : 09650289030
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