समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /103 दिसम्बर 2019
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
रविवार : 22.12.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
नरेश कुमार उदास
01,
नदियाँ
जब भी तोड़ती हैं
किनारे
हुंकारती हैं
तीव्र गति से बहती हैं
तो कितना कुछ
बहा ले जाती हैं।
02.
पहाड़ की धूप
भली लगती है
रेखाचित्र : रीना मौर्या "मुस्कान" |
सबको तरसाती है
कभी-कभी आती है
आँख-मिचौली खेलती
चली जाती है।
03.
मेरे भाग्य में ही
लिखा होगा दर्द
होगी इतनी सारी पीड़ा
तभी मेरे भीतर
दर्द का सागर बहता रहता है
हरदम।
अकाश-कविता निवास, लक्ष्मीपुरम, सै. बी-1, पो. बनतलाब, जि. जम्मू-181123 (ज-क)/मो. 09419768718
No comments:
Post a Comment