समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /102 दिसम्बर 2019
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 16.12.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
कमलेश सूद
01.
उस विनाशकारी भूकंप के बाद
वृद्धा ढूँढ़ रही है कुछ
मलबे में बचा सामान
जो मिटा सके भूख उसकी
और छुपा सके लाज!
02.
मन करता है कभी-कभी
तितलियों संग उड़ जाऊँ
हवा-सी बह जाऊँ कभी
बच्चों-सी खेलूँ और
उचककर चाँद को
अपनी मुट्ठी में ले लूँ कभी
रेखाचित्र : (स्व.) बी. मोहन नेगी |
03.
कविता गाती है
कुलबुलाती है अंतर में
उमड़-घुमड़कर बेचैन करके
तड़पाती है
और धीरे से फिर
कागज पर उतर आती है।
- वार्ड नं. 3, घुघर रोड, पालमपुर-176061, काँगड़ा, हि.प्र./मो. 09418835456
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