समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 96 नवम्बर 2019
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रविवार : 03.11.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
राजेश ’ललित’ शर्मा
01.
ख़ामोशियों ने इक
दी है गहराइयों से हूक
किसी ने सुनी क्या!!
या फिर से रह गई
अनसुनी दास्ताँ मेरी!
02.
टूटकर बिखरना
बहुत हुआ अब
समेट लो फिर
वजूद को अपने
सफ़र लंबा है
रुकेगें पड़ावों पर
ये टुकड़े काम आयेंगे।
03.
मुद्दत हुई
आइने को चेहरा देखे
मुद्दत हुई
चेहरे को मुखौटा ओढ़े;
ये नज़रें चुराये हैं
रेखाचित्र : अनुभूति गुप्ता |
पूछना आइने से
ज़रा चुपके से
आइने ने छिपा रखे हैं
चेहरे दर चेहरे।
04.
ये दाग जो दिल पर लगे हैं
जनाब, उम्र भर सुलगे हैं
भीतर ही भीतर जले हैं
कभी तुम उसको छले हो
कभी वो तुमको छले हैं।
- बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484
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