समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 97 नवम्बर 2019
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 10.11.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. रेशम धागा
नेह के धागे
बदल गए
हाँ,
अब प्रेम भाव भी
रेशम से
चाँदी हो गए।
02. मुठ्ठी में वक्त
सोचा था
वक्त को
मुठ्ठी में पकड़ लूँ
पर
ना मुठ्ठी वैसी रही
चित्र : प्रीति अग्रवाल |
वो रेत बन फिसलता ही रहा।
03. दीए की रोशनी
पैसों की चमक से
अब रिश्ते बुझने लगे
दीये की रोशनी
ट्यूब लाइट से
बेहतर जगमगाती थी।
- 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 07986249984
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