समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 98 नवम्बर 2019
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 17.11.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
जेन्नी शबनम
01. चकमा
चलो आओ
हाथ थामो मेरा
मुट्ठी जोर से पकड़ो
वहाँ तक साथ चलो
जहाँ ज़मीन-आसमान मिलते हैं
वहाँ से सीधे नीचे छलाँग लगा लेते हैं
आज वक़्त को चकमा दे ही देते हैं!
रेखाचित्र : डॉ. संध्या तिवारी |
चाहती हूँ दिन के उजाले की
कुछ किरणें
मुट्ठी में बंद कर लूँ,
जब घनी काली रातें
लिपट कर डराती हों मुझे
मुट्ठी खोल
थोड़ा उजाला पी लूँ,
थोड़ी-सी
ज़िन्दगी जी लूँ!
- द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल-5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-110016
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