समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 94 अक्टूबर 2019
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
रविवार : 20.10.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
01.
पहली बार जमीन पर
लकीर खींचे जाते वक्त
जमीन रही होगी
सहज, सामान्य
धमाकों से पूर्व लहरा रही
किसी दीपक की लौ की तरह
उसे अंदाजा नहीं होगा
लकीरें खींचे जाने की
भयावहता का
02.
लकीरों का
नाता रहा है
तनावों से
लकीरें खींचे जाते वक्त
पेशानी पर
आ ही जाती है
एकाद लकीर!
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
03.
लकीर का फकीर होना
अच्छा है या नहीं
आधुनिक है, समय के हिसाब से
अपडेट कल्चर है
क्योंकि आजकल
होता यही है
लोग निकल जाने देते हैं
सांप को
और पीटते रहते हैं
लकीर
- 31, सुदामानगर, उज्जैन-456001 म.प्र./मो. 09424816096
No comments:
Post a Comment