समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 88 सितम्बर 2019
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रविवार : 08.09.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
नरेश कुमार उदास
01.
कुछ टूटे हुए सपने
कुछ दर्दीले किस्से
आये हैं
इस जीवन में
सिर्फ मेरे हिस्से
02.
उदास दिनों में
अनायास ही
फूट पड़ते हैं
कण्ठ से
कुछ दर्दीले गीत
और मन
बोझिल सा हो जाता है।
03.
पिघल गया हूँ
पहले मैं पत्थर था
अब मोम बन गया हूँ।
रेखाचित्र (सौ.) : डॉ. संध्या तिवारी |
04.
निशब्द भी
उतर जाती है
मन में
कहीं गहरे तक
अनपढ़ भी-
इसे झट समझ लेते हैं।
- अकाश-कविता निवास, लक्ष्मीपुरम, सै. बी-1, पो. बनतलाब, जि. जम्मू-181123 (ज-क)/मो. 09419768718
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