समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 87 सितम्बर 2019
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 01.09.2019
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 01.09.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
राजेश 'ललित’ शर्मा
01.
कभी यूँ भी
चले आते हैं
वजह हो हर बार
ज़रूरी तो नहीं।
02.
तुम भी थे
हम भी थे
महफ़िल फिर भी
लगी सूनी सी!
03.
दो पल चैन के
रेखाचित्र : रीना मौर्या "मुस्कान" |
ये बेचैनियाँ अब,
सँभाली नहीं जाती।
04.
नींद से बोझिल थी आँखें
ख़्वाब सारे ले उड़ा कोई
करवटें बदलती रही नींद
ख़्वाब थे कि लौटकर
न आये कभी।
- बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484
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