समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 78 जून 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 30.06.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
01. रिश्ते
रिश्तों की भीड़ में
प्यार गुम हो गया है,
प्यार ढूँढ़ती हूँ
बस
रिश्ते ही हाथ आते हैं।
02. परवाह
कई बार प्रेम के रिश्ते फाँस-से
चुभते हैं
इसलिए नहीं कि
रिश्ते ने दर्द दिया
इसलिए कि
रिश्ते ने परवाह नहीं की
और प्रेम की आधारशिला परवाह होती है!
03. पूरा का पूरा
तेरे अधूरेपन को
अपना पूरा दे आई
यूँ लगा मानो दुनिया पा गई
पर अब जाना
तेरा आधा भी तेरा नहीं था
फिर तू कहाँ समेटता
मेरे पूरे ‘मैं’ को
तूने जड़ दिया मुझे
मोबाइल के नंबर में
पूरा का पूरा!
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
ज़िन्दगी का अर्थ
किस मिट्टी में ढूंढें?
कौन कहे कि आ जाओ मेरे पास
रिश्ते नाते
अपने पराये
सभी बेपरवाह
किनसे कहें कि एक बार मुझे याद करो
मुझे सिर्फ मेरे लिए
बहुत चाहता है मन
कहीं कोई अपना
जो सिर्फ मेरा...
- द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल-5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-110016
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