समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 76 जून 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 16.06.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
इन्द्र देव गुप्ता
01.
घना है अँधेरा
नहीं अता-पता सवेरे का,
देखते ही बनेगा
भागते अँधेरे का हाल,
जब हर कमजोर हाथ
उठाएगा एक मशाल
02.
खम्भों पर टिकी गोल छत के इर्द गिर्द
उड़ते हुए सफेदपोश कौए,
जनता के लिए, जनता द्वारा बनाए
जनतंत्र के हौए।
03.
विद्रोही तेवर हैं तत्पर
उतारने को चेहरे से आदमी के
परतें आवरणों की,
अब बाट नहीं जोहती कोई अहिल्या
किन्हीं रामचरणों की।
छायाचित्र : ज्योत्श्ना शर्मा |
04.
आ गईं अनुभूतियाँ हाशिये पे
पराई पीर पढ़ नहीं पाता कोई
सब अंधे-बहरे पुतले हैं,
चल रहे हैं साथ
फिर भी आपस में तने हैं।
- बी-31, जीएफ, साउथएण्ड फ्लोर्स, सै. 49, गुरुग्राम-122018, हरियाणा/मो. 09315029382
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