समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 68 अप्रैल 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 21.04.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुरेन्द्र वर्मा
01. टूटता है तारा
चाँद की तरह
रेख बनाता हुआ प्रकाश की
धीरे धीरे अस्त नहीं होता
अचानक कहीं टूटता है तारा
चीर जाता है छाती आकाश की
02. कैक्टस
एक अरसे बाद
उस पर एक फूल खिला
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा |
मैं अपना कटाक्ष
भूल गया!
03. सांध्य बेला में
जीवन भर छिपाता रहा
कहा भी तो सिर्फ संकेत से
लेकिन इस सांध्य बेला में
अब कोई बाधा नहीं है
कथन सहज हो गए हैं
- 10 एच आई जी, 1, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद-211001, उ.प्र./मो. 09621222778
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