समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 67 अप्रैल 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 14.04.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
01.
ऊँची से ऊँची सीढ़ियाँ चढ़ना,
गहरी-गहरी खाइयाँ फाँदना
मेरी आदत हो गई है,
लोग कहते हैं-
‘तुम निडर हो गई हो...‘
02.
हथौड़े ही तो थे
इस्तेमाल के तरीक़े थे कि
रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी |
दूसरे ने,
आग में तपे लोहे पर वार कर,
उसे नया आकार दिया!!
03.
बबूल से तो बचकर निकल गई
पर चलती सड़क पर
विषधरों से बचना
थोड़ा मुश्किल लगा...
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
No comments:
Post a Comment