Sunday, August 19, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 39                  अगस्त 2018

रविवार : 19.08.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

ज्योत्स्ना शर्मा





01.

जतन से बनाया 
फिर.. 
खुद ही तोड़ देते हो 
हे सारथी!
समय के रथ को 
विनाश के पथपर 
क्यों मोड़ देते हो।

02.

अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध मन
मगन हो गई,
लो आज धरती
गगन हो गई।

03.

मौन भावों के
जब उन्होंने
अनुवाद कर दिए
किसी ने भरा प्रेम
किसी ने उनमें 
आँसू भर दिए।

04.

तरंगायित है
आज वो 
ऐसी तरंगों से
भर देगा जग को
प्यार भरे रंगों से।

05.

नन्ही पलकों पर 
छायाचित्र : रोहित काम्बोज

सपनों का 
बोझ
बड़ा भारी है... 
उठाना लाचारी है।

06.

बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया।

  • एच-604, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

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