समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/324 मार्च 2024
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 17.03.2024
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
परमेश्वर गोयल उर्फ काका बिहारी
01.
चिड़िया
चिड़े से बोली-
जंगल से मन ऊब गया है,
चलो! किसी गाँव
या शहर चलते हैं,
चिड़ा बोला- नहीं-नहीं!
वहाँ आदमी रहते हैं!
02.
आदत
त्याग की
नयी नहीं
पुरानी है,
हमारी आँख में
अभी भी पानी है!
03.
रेखाचित्र : डॉ सुरेंद्र वर्मा |
पच्चीस बाँटा
पचहत्तर खा गये
हिस्सा
अपना-अपना
कुर्सी वाले पा गये!
- गुलाब बाग, पूर्णिया- 854326, बिहार
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