समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /207 दिसंबर 2021
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 19.12.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
ज्योत्स्ना शर्मा
01.
हैरान जंगल !
सालों-साल तो
बाज और भेड़ियों ने
अपना कानून चलाया
गिद्धों ने नोच-नोच खाया
इलज़ाम मोरों पर आया।
02.
उदास हैं गिद्ध
कुछ कह नहीं पाते हैं!
कह सकते तो कहते
ये मनुष्य
हम पर क्यों इलज़ाम
लगाते हैं
हमने कहाँ मारा
इनकी तरह
ज़िंदा प्राणियों को,
हम तो मुर्दों को खाते हैं!
03.
गरीबी, भूख,
फाक़ाकशी पर,
क़ौम के आका
व्यवस्था से
इस क़दर गुस्सा खा गए
कि, बच्चों के हाथों में
बन्दूकें थमा गए।
04.
लो हो गया इन्साफ!
निर्दाेष बरी भँवरा,
उसका कोई दोष
नहीं पाया गया।
धूर्त कलियों द्वारा
अपनी महक से
खुद ही लुभाया गया,
पास बुलाया गया।
- एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053
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