समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /191 अगस्त 2021
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 29.08.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
वी. एन. सिंह
01. रात
बहुत खामोश है
जैसे पक्षियों के
डैनों में दुबकी हो रात
अब कोई फड़फड़ाहट नहीं
टहनियों पर।
02. तुम ठहाके लगा रहे हो
समझ सको
अभी वक्त है सम्हलो
जिस्म से खालें उतर रहीं
राजनीति के गलियारे में
तुम ठहाके लगा रहे हो।
03. मौसम
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
इस मौसम को
क्या नाम दूँ
जो अपने में गुमसुम है
उदासी का रेगिस्तान
फैल गया शहर में।
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