समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /155 दिसंबर 2020
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 20.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
धूप में तपी, काँटों में चली,
पानी में रंग-सी मिली-
सीप बन मोती पालती रही,
अब अँधेरे में,
सूरज बन चमकने दो मुझे।
02.
रंगमंच है,
अभिनेता हैं
विभीषण के मुखौटे में छिपे
रावण की खोज ज़ारी है।
03.
साँझ ढल रही थी
वार्तालाप चल रहा था
जंगल कट रहे हैं, जंगल छा रहा है।
किस-किसका कैसा?
एक आवाज़ ....देर तक गूँजी
उस ओर ध्यान जाता कि
रेखाचित्र : (स्व. बी.मोहन नेगी ) |
04.
आग की ज्वलनशीलता का
आभास होता तो
चमक की दीवानी मैं-
सबकी आँख बचा
क्यों जला बैठती अपना हाथ!
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
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