समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /154 दिसंबर 2020
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 13.12.2020
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 13.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शोभा रस्तोगी 'शोभा'
01.
भूलने लगती हूँ मैं
अपना नाम, गली, शहर
तेरी याद महक बन
झंकृत कर जाती है साँसें
रच देती है हाथों में मेहँदी
पाँवों में महावर
और मैं ...
ढूँढने लगती हूँ
तेरी खुशबू
हर व्यथा के
कपड़े उघाड़।
02.
तुम देखते हो चाँद
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर |
अँजुरी में भरकर
उछाल देते हो एक चुम्बन
जो लहराता बलखाता
उड़ान भरता है शशि पथ पर
फ़िर वापस हो लेता है
और सज जाता है
ठीक बीचोंबीच
मेरी पेशानी के।
- आर जेड डब्ल्यू-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मो. 09650267277
No comments:
Post a Comment