समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /156 दिसंबर 2020
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 27.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
भावना सक्सैना
01.
मैंने पिरोये
टुकड़े रात के
झरोखे से चाँद
ताकता रहा,
अपलक!
नींद रूठी हुई
कहीं जा छिपी
02.
बरसते हो जब,
तुम खोजते सौंधी महक
मैं नए चिने पलस्तर-सी
नमी खोजती सख्त हो जाने को
सदियों के पुरुष से
तुम खोजते समर्पण,
मैं नत,
बस तेज़ हवा बह जाने तक।
03. मौसम पुरानेचित्र : प्रीति अग्रवाल
धुंध कोहरा खा गया सब
धूप के मौसम पुराने
खत लिखे थे एक दिन जो
पढ़ के फिर रोए दीवाने...
उन खतों से झाँकते हैं
अनगिन सुनहरे स्नेह के क्षण
भीगकर कोहरे में भी
स्पष्ट ज्यों, नया हो दर्पण।
- 64, प्रथम तल, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, सेक्टर 30-33, फरीदाबाद, हरियाणा-121003