Sunday, December 27, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /156                       दिसंबर 2020

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 27.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


भावना सक्सैना




01.

मैंने पिरोये

टुकड़े रात के

झरोखे से चाँद 

ताकता रहा,

अपलक!

नींद रूठी हुई 

कहीं जा छिपी


02.

बरसते हो जब,

तुम खोजते सौंधी महक

मैं नए चिने पलस्तर-सी

नमी खोजती सख्त हो जाने को

सदियों के पुरुष से 

तुम खोजते समर्पण,

मैं नत,

बस तेज़ हवा बह जाने तक।


03. मौसम पुराने

चित्र : प्रीति अग्रवाल 

धुंध कोहरा खा गया सब

धूप के मौसम पुराने

खत लिखे थे एक दिन जो

पढ़ के फिर रोए दीवाने...

उन खतों से झाँकते हैं

अनगिन सुनहरे स्नेह के क्षण

भीगकर कोहरे में भी 

स्पष्ट ज्यों, नया हो दर्पण।

  • 64, प्रथम तल, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, सेक्टर 30-33, फरीदाबाद, हरियाणा-121003

Sunday, December 20, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /155                       दिसंबर 2020

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 20.12.2020 
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


पुष्पा मेहरा 


01.

धूप में तपी, काँटों में चली, 

पानी में रंग-सी मिली-

सीप बन मोती पालती रही,

अब अँधेरे में, 

सूरज बन चमकने दो मुझे।


02.

रंगमंच है, 

अभिनेता हैं 

विभीषण के मुखौटे में छिपे 

रावण की खोज ज़ारी है।

03.

साँझ ढल रही थी 

वार्तालाप चल रहा था 

जंगल कट रहे हैं, जंगल छा रहा है।

किस-किसका कैसा?

एक आवाज़ ....देर तक गूँजी

उस ओर ध्यान जाता कि 

रेखाचित्र : (स्व. बी.मोहन नेगी )
पहले ही सब शांत हो चुका था।  

04.

 आग की ज्वलनशीलता का 

आभास होता तो

चमक की दीवानी मैं-

सबकी आँख बचा 

क्यों जला बैठती अपना हाथ! 

  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

Sunday, December 13, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /154                       दिसंबर 2020

 

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार 13.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शोभा रस्तोगी 'शोभा' 




01.

भूलने लगती हूँ मैं 

अपना नाम, गली, शहर 

तेरी याद महक बन 

झंकृत कर जाती है साँसें 

रच देती है हाथों में मेहँदी 

पाँवों में महावर 

और मैं ...

ढूँढने लगती हूँ

तेरी खुशबू 

हर व्यथा के

कपड़े उघाड़। 

02.

तुम देखते हो चाँद  

रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 

अँजुरी में भरकर

उछाल देते हो एक चुम्बन

जो लहराता बलखाता 

उड़ान भरता है शशि पथ पर

फ़िर वापस हो लेता है 

और सज जाता है 

ठीक बीचोंबीच 

मेरी पेशानी के। 

  • आर जेड डब्ल्यू-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मो. 09650267277

Sunday, December 6, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /153                       दिसंबर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 06.12.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शील कौशिक 






01. असमंजस में हैं परिंदें

असमंजस में हैं परिंदें
पेड़ों की बजाय
इमारतों को उगते देख
सोचते हैं
भला वो शाख कहाँ से लायें
जिस पर वो कर सकें बसेरा

02. स्वछन्द बदली

आस लगाकर मुग्ध हो ताक रहे थे सभी
उस स्वछन्द बदली को
यकायक अँगूठा दिखाती
छायाचित्र  : उमेश महादोषी 
हवा संग तेजी से भाग गई वह
सबके सामने

03. बारिश के बाद

वर्षा के बाद की धूप
रचती है तिलिस्म
हवा में लटकी बूँदों में
इन्द्रधनुष सजाकर
  • मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मो. 09416847107