समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /108 जनवरी 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 26.01.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
केशव शरण
01. अन्दर एक द्वंद्व के बाद
गोरियाँ गुज़रती हैं
गरदा आता है
खिड़की खोलने में भी
दुविधा है कम नहीं!
अंदर एक द्वंद्व के बाद
आखि़र, निश्चयात्मक हुआ-
रेखाचित्र : रीना मौर्या 'मुस्कान' |
02. अभी मैंने कुछ नहीं देखा था
कुछ देर और
मेरा रुकने का मन था
मैं अपने मन से गया था
वह एक मनभावन वन था
अभी मैंने कुछ नहीं देखा था
और साथी ने सब देख लिया था
- एस 2/564 सिकरौल वाराणसी-221002/मो. 09415295137
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