समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /107 जनवरी 2020
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. कमल
मन में
कीचड़ ही कीचड़ भरा
पर, न जाने क्यों
कहीं भी
कमल न खिल सका।
02. खामोश रिश्ते
रिश्तों की खामोशी
दीवारों पर असर कर गई
अब, पहले की तरह दीवारें
अकेले में
मुझसे बातें नहीं करतीं।
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
रविवार : 19.01.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. कमल
मन में
कीचड़ ही कीचड़ भरा
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
कमल न खिल सका।
02. खामोश रिश्ते
रिश्तों की खामोशी
दीवारों पर असर कर गई
अब, पहले की तरह दीवारें
अकेले में
मुझसे बातें नहीं करतीं।
- 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 07986249984
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