समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 80 जुलाई 2019
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
रविवार : 14.07.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
चिन्तामणि जोशी
01. नियत
मुँडेर पर दाने
व्यर्थ ही क्यों बिखेरता है
रोज
लेकर ओट
कि चिड़ियाँ तो
कबके भाँप चुकी
तेरी नियत का खोट।
02. ताला
दिन रात चौकसी की
खूँटे पर टँगा रहा
कसम है फर्ज की
जो झपकी भी ली हो
मैंने सोचा भी न था
कि चाभी
रेखाचित्र : (स्व.) पारस दासोत |
गुस्सा मुझ पर उतारोगे।
03. नियत
उस आदमी की
नियत के क्या कहने
प्रकृति का आक्रोश सह
लाश में तब्दील
आदमी के अंग काट
निकाल रहा है गहने।
- देवगंगा, जगदम्बा कॉलोनी, पिथौरागढ-262501, उ.खंड/मो. 09410739499
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