Sunday, July 15, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 34                   जुलाई 2018


रविवार  :  15.07.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


नारायण सिंह निर्दोष





01. गाँव

पेड़ से
उतरकर
कुतरने लगीं मुझे
गिलहरियाँ
मैं लगा फेंकने हाथ-पाँव
जैसे
वे कहती हों
‘लौट चलो गाँव’।

02. प्यार

उसने
मेरी तरफ बढ़ाया
दोस्ती का हाथ
और
उँगलियों के पोर
छूकर
आगे बढ़ गया
चलो,
दोस्ती के नये
माइने गढ़ गया।

03.

मैं
तुम्हारी छोड़ी हुई
साँसें
लेकर जीता हूँ
और तुम मेरी।
हम
एक-दूजे की देह से
भाप बनकर उड़ा पानी
ज़मीन खोदकर पीते हैं
यही तो प्यार है
जो कि
लुप्त होता जा रहा है।

04. अभ्यस्त

एक आवाज़ हुई 
धढ़ाम...
घबरा कर/उठे
और एक दूसरे से
बे-इन्तहां
लिपट गये
तभी कूल्हे मटकाती
निकली.... बिल्ली
और हम 
सो गये पुनः
बे-खबर
अगली धढ़ाम होने तक
रेखाचित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा


05.

मैं
भावुक हूँ
यह मेरी समस्या है।
तुम नहीं
यह
तुम्हारी सहूलियत।
किन्तु उसका क्या?
जो हम दोनों के बीच
छिटककर
गिर गया है!

  • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मोबा. 09810131230

No comments:

Post a Comment