समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 26 मई 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुदर्शन रत्नाकर
01.
मैंने तो फूल बिछाए थे
तेरी राहों में
पता नहीं काँटें कैसे
चुभ गए मेरे हाथों में।
02.
जीवन भर
मोमबत्ती-सी जलती रही
क्षण-क्षण पिघलती रही
अंतिम छोर तक पिघली
मोमबत्ती की सीमा रेखा थी
जली, पिघली और
अस्तित्वहीन हो गई।
03.
रात के आते ही
तुम्हारी तस्वीर
आँखों में उतर आती है
दिल में समाती है
और सपनों में रुला जाती है।
04.
रिश्ते कोई सामान नहीं
जो सिर्फ ढ़ोए जाएँ
रिश्ते एहसास होते हैं
जो दिल में उतरते हैं
और जिन्हे़ं जिया जाता है।
05.
हरी शाखा ने कहा
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
बस करो अब
टुकड़ों में मत बाँटों
क्या बिगाड़ती हैं भला
विष हम पीती हैं
और अमृत बाँटती हैं।
06.
फुटपाथ पर बैठा वो
टुकुर-टुकुर
ताक रहा था
साफ़ सुथरे
कपड़े पहने
स्कूल जाते बच्चों को।
- ई-29, नेहरू ग्राउण्ड, फ़रीदाबाद-121001, हरियाणा
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