समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 25 मई 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शील कौशिक
01. अंकुराने की चाह
चिलचिलाती धूप से
तपती धरती ने
सुन लिया है बादलों का
आश्वासन भरा संदेश
अंगड़ाई ले जाग उठी है वह
अंकुराने की चाह में।
02. सताते हैं बादल
कभी-कभी बेमौसम आकर
बहुत सताते हैं बादल
एक बिगड़ैल बैल की तरह
बस बरसते ही जाते हैं
और धर लेते हैं
तूफान का रूप।
03. आपस में बतियाते
मौन खड़े पहाड़
तुम्हें नहीं पता
आपस में कितना बतियाते हैं
कभी बहते झरनों की
कल-कल में
तो कभी पेड़ों की
साँय-साँय की आवाज में।
04. प्रेम भरी पाती
सूरज का मुखड़ा देख
धीरे-धीरे आँखें खोलhi
भरपूर मुस्कान के साथ
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
भौरों-तितलियों को
प्रेम भरी पाती भेजता है
सूरजमुखी का फूल।
05. नदी केवल नदी
नदी केवल नदी ही नहीं होती
वह है एक आत्मा
जो बहती है
हमारे दिल और दिमाग से होकर
उसमें पानी ही नहीं बहता
बहते हैं करोड़ों लोगों के सपने।
- मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मोबा. 09416847107
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