Sunday, May 27, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 27                   मई 2018


रविवार  :  27.05.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शिव डोयले




01.
कितनी बड़ी
बिडम्बना झेल रहे हैं
कि मुर्दा पिच पर
ज़िंदा लोग खेलं रहे हैं

02.

तुम्हारे साथ/गुजारे
सर्दी में
गर्म होते/क्षणों को
आज तुमने
स्वेटर में
नई डिजाइन/डालकर
बुन दिये हैं

03.

भुलाए नहीं
भूल सकता
तुम्हारी वह
मधुरिम हंसी
गुलाब की/पंखुरी पर
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 
ओस की बूंद
ठहरी

04.

हम प्लेटफार्म बने
खड़े रहे
और समय/रूमाल हिलाता
पास से
गुजर गया

  • झूलेलाल कॉलोनी, हरीपुरा, विदिशा-464001 (म.प्र.)/मो.  09685444352 

Sunday, May 20, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 26                   मई 2018


रविवार  :  20.05.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


सुदर्शन रत्नाकर




01.

मैंने तो फूल बिछाए थे
तेरी राहों में
पता नहीं काँटें कैसे
चुभ गए मेरे हाथों में। 

02.

जीवन भर
मोमबत्ती-सी जलती रही
क्षण-क्षण पिघलती रही
अंतिम छोर तक पिघली
मोमबत्ती की सीमा रेखा थी
जली, पिघली और
अस्तित्वहीन हो गई।

03.

रात के आते ही
तुम्हारी तस्वीर
आँखों में उतर आती है
दिल में समाती है
और सपनों में रुला जाती है।

04.

रिश्ते कोई सामान नहीं 
जो सिर्फ ढ़ोए जाएँ
रिश्ते एहसास होते हैं
जो दिल में उतरते हैं
और जिन्हे़ं जिया जाता है। 

05.

हरी शाखा ने कहा
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 

बस करो अब
टुकड़ों में मत बाँटों
क्या बिगाड़ती हैं भला
विष हम पीती हैं
और अमृत बाँटती हैं।

06.

फुटपाथ पर बैठा वो
टुकुर-टुकुर 
ताक रहा था
साफ़ सुथरे
कपड़े पहने
स्कूल जाते बच्चों को। 

  • ई-29, नेहरू ग्राउण्ड, फ़रीदाबाद-121001, हरियाणा

Sunday, May 13, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 25                   मई 2018


रविवार  :  13.05.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शील कौशिक





01. अंकुराने की चाह

चिलचिलाती धूप से
तपती धरती ने
सुन लिया है बादलों का
आश्वासन भरा संदेश
अंगड़ाई ले जाग उठी है वह
अंकुराने की चाह में।

02. सताते हैं बादल

कभी-कभी बेमौसम आकर
बहुत सताते हैं बादल
एक बिगड़ैल बैल की तरह
बस बरसते ही जाते हैं
और धर लेते हैं
तूफान का रूप।

03. आपस में बतियाते

मौन खड़े पहाड़
तुम्हें नहीं पता 
आपस में कितना बतियाते हैं
कभी बहते झरनों की
कल-कल में
तो कभी पेड़ों की
साँय-साँय की आवाज में।

04. प्रेम भरी पाती

सूरज का मुखड़ा देख
धीरे-धीरे आँखें खोलhi
भरपूर मुस्कान के साथ
रेखाचित्र : रमेश गौतम 

भौरों-तितलियों को
प्रेम भरी पाती भेजता है
सूरजमुखी का फूल।

05. नदी केवल नदी

नदी केवल नदी ही नहीं होती
वह है एक आत्मा
जो बहती है
हमारे दिल और दिमाग से होकर
उसमें पानी ही नहीं बहता
बहते हैं करोड़ों लोगों के सपने।

  • मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मोबा. 09416847107  

Sunday, May 6, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 24                     मई 2018


रविवार  :  06.05.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’




01. मरते शब्द

कहते हैं लोग
नहीं मरते शब्द
दब गये कुछ पुराने शब्द
ढेंकली, ढेंकी, ढेबुआ....
रहँट, रहँटा.....
कलम-दवात....
शब्दकोश के पन्नों में
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह

यह मरना नहीं है क्या?

02. शर्म

छुईमुई शरमा गई
छूते ही
अच्छा लगा
बची तो है कहीं
शर्म.....

03. मौसम

बदल डालो अपने को
समय के साथ
कोई बुराई नहीं
आखिर 
मौसम भी तो यही करता है

04. साँप-सीढ़ी

उदास हैं पेड़
उजड़ गये घोंसले
नहीं आते पंछी
खेलने
रेखाचित्र : (स्व.) पारस  दासोत  

साँप-सीढ़ी....

05. चीरहरण

धरती की हरियाली का
क्षरण
सीता का हरण
द्रोपदी का 
चीरहरण.....

  • ‘शिवाभा’, ए-233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ-250001 (उ.प्र.)?./मो. 07906014752