Sunday, March 5, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /270                     फरवरी 2023 

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 05.03.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!   



कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’



 

01. तुम आए


तुम आए स्वप्न जैसे

इससे पहले कि यकीं होता

दुनिया की हकीकत ने

नींद से जगा दिया

और मैं कभी तुम्हें खोज रही थी

कभी देख रही थी- दीवारें।


02. पीड़ा


तुमसे दूर होकर

विरह को जीने में

असहनीय पीड़ा

बार-बार मरने जैसी।


03. आँखें


तुम्हें विदा कहते हुए

मेरी आँखों ने एक चिट्ठी लिखी

तुम्हारी आँखों के नाम,

तुम्हारी आँखों ने पढ़ी;

लेकिन आँसुओं से

उस लिखावट को धोने के बजाय

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
तुम्हारी आँखों ने

समेट लिया उन सन्देशों को

और जुदाई में आँसुओं से

एक-एक अक्षर पर

लाखों ग्रन्थ लिख डाले।


-II S-3, B.T. HOSTEL UNIVERSITY CAMPUS, MADHI CHAURAS, P.O. KILKILESHWAR, TEHRI,Garhwal- 249161 Uttarakhand

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