Sunday, June 19, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /233                           जून 2022 

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 19.06.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा





01.


कितना गुस्सा थी मैं

किसी की नहीं सुनी

मन का पहना, मन का खाया

कितना शोर मचाया

खूब भटकी अपनी ‘आज़ादी’ के साथ

लौटी जो घर...

न जाने किन ख्यालों में खो गई

और फिर...

तुम्हारे कन्धे पर

सिर रखकर सो गई।


02.


सकरी गलियों में

बड़े-बड़े वाहन

अटक ही जाएँगे

सुनो!

मन को विस्तार दो

तभी बड़े विचार आयेंगे।


03.


आज के दौर में

दीमकों ने खाई

तो, किताब मुस्कराई

रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी 
और बोली... चलो!

किसी के तो काम आई।


04.

झूठ के नगर में

किसी ने

हमारे प्यारे ‘सच’ की

बात चला दी

सब चिल्लाए, ‘ऐसा कुछ नहीं होता है’

मज़े की बात

हमने भी

हाँ में हाँ मिला दी।

  • एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053 

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