समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 47 अक्टूबर 2018
रविवार : 14.10.2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शील कौशिक
01. अपना दुःख छोटा लगेगा
फुर्सत में कभी
पत्थरों की कहानी
उनकी जुबानी सुनना
अपना दुःख तुम्हे
बहुत छोटा लगेगा
02. पहाड़ की गोद में
हमने सुना है
पहाड़ की गोद में कुदरत रहती है
वहीं पनपती, फलती-फूलती है
जैसे पिता की गोद में
बेटी जन्नत बनकर रहती है
03. देवों का घर
पहाड़ के पास
आत्मीयता की दिव्य आँच और उजास है
तभी तो बने बैठे हैं वो
देवों का घर
04. खुली किताब जैसा है
खुली किताब जैसा है पहाड़
लिखा है जिसमे
इसके जीवट होने का रहस्य
और इसके सुख-दुःख भी
05. जो मौन हैं
मेरी दादा और पहाड़
कभी-कभी मुझे एक जैसे लगते हैं
जो मौन हैं अनगिनत चोटों के बावजूद
06. प्रियतमा नदी से
एक दिन निराश, हताश, दुःखी पहाड़
अपनी प्रियतमा नदी से बतिया रहा था
नदी रोते हुए बहती हुई चली जा रही थी
07. समस्त कीमती सामान
झील में आकाश सजा लेता है
रात को अपनी दुकान
रखकर अपना समस्त कीमती सामान
चाँद-तारे के रूप में
08. वासंती हवा को देखो
जरा वासंती हवा को तो देखो
खुशबू में नहाई
युवती-सी बौराई
किसी की बात पर कान न धरती
बहती फिर रही है
09. फूलों की बारात
ऋतुराज वसंत ले आया
फूलों की बारात
पीली चुनर ओढ़ सुहागन बनी धरा
इठला रही है
10. जादूगर चाँद
जादूगर बना चाँद
नचाता है लहरों को अपने इशारों पर
और लहरें कठपुतली बनी
उठती-बैठती हैं
समुद्री आसन पर
रविवार : 14.10.2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शील कौशिक
01. अपना दुःख छोटा लगेगा
फुर्सत में कभी
पत्थरों की कहानी
उनकी जुबानी सुनना
अपना दुःख तुम्हे
बहुत छोटा लगेगा
02. पहाड़ की गोद में
हमने सुना है
पहाड़ की गोद में कुदरत रहती है
वहीं पनपती, फलती-फूलती है
जैसे पिता की गोद में
बेटी जन्नत बनकर रहती है
03. देवों का घर
पहाड़ के पास
आत्मीयता की दिव्य आँच और उजास है
तभी तो बने बैठे हैं वो
देवों का घर
04. खुली किताब जैसा है
खुली किताब जैसा है पहाड़
लिखा है जिसमे
इसके जीवट होने का रहस्य
और इसके सुख-दुःख भी
05. जो मौन हैं
मेरी दादा और पहाड़
कभी-कभी मुझे एक जैसे लगते हैं
जो मौन हैं अनगिनत चोटों के बावजूद
06. प्रियतमा नदी से
एक दिन निराश, हताश, दुःखी पहाड़
अपनी प्रियतमा नदी से बतिया रहा था
नदी रोते हुए बहती हुई चली जा रही थी
07. समस्त कीमती सामान
झील में आकाश सजा लेता है
रात को अपनी दुकान
रखकर अपना समस्त कीमती सामान
चाँद-तारे के रूप में
08. वासंती हवा को देखो
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता |
जरा वासंती हवा को तो देखो
खुशबू में नहाई
युवती-सी बौराई
किसी की बात पर कान न धरती
बहती फिर रही है
09. फूलों की बारात
ऋतुराज वसंत ले आया
फूलों की बारात
पीली चुनर ओढ़ सुहागन बनी धरा
इठला रही है
10. जादूगर चाँद
जादूगर बना चाँद
नचाता है लहरों को अपने इशारों पर
और लहरें कठपुतली बनी
उठती-बैठती हैं
समुद्री आसन पर
- मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मो. 09416847107
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