Sunday, October 7, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 46                  अक्टूबर 2018

रविवार : 07.10.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शशि पाधा




01.

धुँधला ही रहता है 
मेरा चश्मा 
साँसों में नमी जो रहती है 
आँखों में रहे तो 
सब जान जाएँगे।

02.

लोग पूछते हैं 
हवाएँ क्यों साँय-साँय करती हैं 
कराहती हैं 
तडपती हैं 
करवटें बदलती हैं 
जाने कौन सी बात 
उन्हें आहत कर जाती होगी।

03.

ठूँठ से हैं पेड़ अभी 
कोई पत्ती नहीं  
कोई रंग नहीं 
वसंत आएगा  
हरे हो जाएँगे 
आदमी क्यों नहीं 
होता है फिर से, हरा 
उम्र वसंत क्यों नहीं हो जाती ????

04.

मुझे पूर्णता की आस नहीं 
मैं अदृश्य में
तुम्हें 
ढूँढना चाहती हूँ 
मैं राधा नहीं 
मीरा होना चाहती हूँ।

05.

रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 
तुमने 
प्रेम का फ़लसफ़ा नहीं पढ़ा 
मुझे  
गणित का गुणा-भाग 
नहीं आया 
फिर भी हम  
जिन्दगी का 
बही-खाता 
लिखते रहे 
लिखते रहे...

06.

मैंने अपनी सोच के शब्द कोष से 
हाँ और ना- दोनों ही शब्द 
मिटा दिए हैं 
अब मैं इच्छा मुक्त्त हूँ!

07.

मेरे आँगन के आकाश में अब 

इन्द्रधनुष 
दिखाई नहीं देता 
शायद 
मेरे हिस्से की धूप से 
बादल
अब रूठ गया है।

08.

अच्छा ही होता होगा 
खुद को 
दूसरों की कसौटी पे 
परखना  
नहीं तो 
आत्मस्तुति में ही 
उम्र गुज़ार देते।

09.

आसान नहीं था 
कुछ रिश्तों को 
समझना-परखना 
ख़रीद लिया है मैंने 
एक आतशी शीशा 
अब 
कितना साफ़ है 
सब कुछ!

  • 174/3, त्रिकुटानगर, जम्मू-180012, जम्मू-कश्मीर

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