समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 07 जनवरी 2018
रविवार : 14.01.2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
01. अक्स !
यूँ छुप तो जाते हैं
दिल के छाले
जतन से ...
छुपाने से
कैसे रोक पाऊँ मैं
अक्स..
रूह के ज़ख़्मों के
लफ़्ज़ों में उभर आने से !!
02. उम्मीद!
कतरे पंख
और... लग गए खुद ही
मर्सिया गाने में
ठहरो!
ज़िन्दा हूँ अभी
भरूँगी उड़ान...
कुछ वक़्त तो लगेगा
नए पंख आने में !!
03. तेरी याद!
एक बदली है
दिल के सहरा को
इस तरह...
पल-पल परसती है
जिस तरह ...
भरके माँग तारों से,
रात की दुलहिन
रात भर तरसती है !!!
04. तितली
कैसे मन को
सुकूँ ..
कैसे तन को
आराम!
नर्म ,नाज़ुक
मखमल बदन
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
फूलों में, शूलों में
विचरने का काम...
मेरे खुदा!
तू ही बता
क्या होना अंजाम?
05.
बड़ी गहरी...
चुभी थी कोई फाँस...
करकती रही!
और ज़िंदगी...
अपने वजूद का अहसास लिए
धीरे-धीरे...
सरकती रही!
- एच-604, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053
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