समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /245 सितम्बर 2022
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 11.09.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
तोप बन गये शब्द
अपने वर्णों से
ना जाने कितनों को घायल
कर, ना जाने कितनों को मौन कर
छटपटाने के लिये छोड़ गये
या
शब्द ना कहो इन्हें, तोप थे ये
वर्णों की ताकत लिये आये
मन को घायल कर,
मुझ अकेली को
लाइलाज कर
छटपटाने के लिये छोड़ गये।
02.
पतझर के बाद
बसन्त का आना
सुखद अनुभूति-
प्राणवान को वरदान
पर ठूँठ के लिये
क्या सूखा क्या हरा...
03.
अंधकार के गर्त से निकला प्रकाश
![]() |
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
जन-जन को चौंधियाता
धरती का सौन्दर्य लूटने को
आमादा-
बढ़ती सभ्यता का अंजाम?
कटघरे में खड़ा यक्ष प्रश्न
अनुत्तरित...
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
No comments:
Post a Comment