समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /195 सितम्बर 2021
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 26.09.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
सब तरफ़ खौफ़ का परचम
लहरा रहा है
नींद सपने देखना चाहती है
मन उड़ान भरना चाहता है
पर एक अज़ीब से बवंडर ने
पैरों को जकड़ रखा है
पीड़ा और दर्द पी-पीकर
शब्द भी बिफरने लगे हैं।
02.
रेखाचित्र : मॉर्टिन जॉन |
हौले से बसंत ने दस्तक क्या दी
मन में राग जगा
मधुबन बाग-बाग हुआ
चिरैयों ने पंख खोले
धरती पर स्वर्ण उड़ा।
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