समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /145 अक्टूबर 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 11.10.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
शशि पाधा
छाज दिया था
माँ ने
हिदायतों से भरी
पोटली भी साथ
कैसी विडम्बना है
जीवन की दुपहरी में
मैं केवल
दुःख बीनती हूँ
और
सार-सार सुख
छाज में ही पड़ा रहता है
बिखरा-सा!
02.
बहुत ज़िद्द थी
मन की
उदास होने की
निराश होने की
बहला दिया उसे
ज़रा सा
मुस्कुरा दिये
हम
अब देखो न
सारी कायनात
मुस्कुरा रही है।
03.
अब मैं वो नहीं
जो पहले थी
अब, मैं वो भी नहीं
जो मैं होना चाहती हूँ
इस होने
न होने के बीच
मैं जो हूँ
उसे मैं जानती नहीं।
- 174/3, त्रिकुटानगर, जम्मू-180012, जम्मू-कश्मीर
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