समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 29 जून 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
राजवंत राज
01.
बस एक मुट्ठी
चबेने की ख़ुशबू
भूखी अंतड़ियों को
और कुलबुला गईं।
02.
आदम की तरह
फ़ितरत नहीं बदलता हूँ मैं
जख्म हूँ
अपने हर दर्द से
बहुत प्यार करता हूँ मैं।
03.
जिद है
सौ झूठ से दबा
एक सच बचाने की।
04.
रेखाचित्र : राजवंत राज |
सुकूं से तुम भी रहते थे
फिर क्यूँ ये हादसे सड़कों पे
बेमतलब, बेपनाह हो गए ?
05.
फिक्र करके
तमाम सियासी मसलों का
एक चादर फिर हरे नोट की
आदतन बिछा ली उसने।
06.
कंटीली तारों पर
बैठते हैं परिंदे
हम कहाँ सँभलेंगे
सँभलना तो आता है उन्हें।
- 201, सूर्या लेक व्यू अपार्टमेंट, विकल्प खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226010, उ.प्र./मो. 09336585211
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