समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 30.10.2016
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित डॉ. पंकज परिमल जी की क्षणिकाएँ।
पंकज परिमल
जिसने बुरा देख लिया था
गवाही देने के क्षण
वह धर्मभीरु हो गया
और उसे अपनी जुबान के
मैली हो जाने का
ख़याल हो आया
02.
02.
नेकी करता हूँ
और
वह आप-से-आप
गुड़प हो जाती है
कुएँ में/बलखाती हुई
पाँच के सिक्के-सी
मुंडेर पर खड़ा मैं
कुछ दूर तक पीछा करता है
उसकी चमक का
03.
एक और एक ग्यारह होते थे
फिर नौ-दो-ग्यारह हुए
सीख रहा हूँ
04.
पहाड़ी के हरे दामन में
आकर बैठ गया है/चुपचाप
नटखट बादल
आकाश के खुले आँगन में
खेलकर/लौटा है अभी
थका-हारा
05.
लाख-लाख टके की
तीन बातों का मेल
जमा है मेरे कानों में
जीवन के अनमोल रहस्यों की
खुरदुरी गाँठ
लगी है घिसे रूमाल में
मन-भर के पैरों में
हौसला
रच गया महावर-सा
- ‘प्रवाल’, ए-129, शालीमार गार्डन एक्स.-।।, साहिबाबाद, जिला गाजियाबाद, उ.प्र./मोबा. 09810838832
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