Sunday, June 24, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 31                   जून  2018


रविवार  :  24.06.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’






01. समर्पण 

पत्थर दिल 
पहाड़ से निकलती नदी 
मचलती 
सागर में समा जाने...

02. प्यार 

परदे के उस ओर तुम 
इस ओर मैं 
धड़कन सुनाई दे रही 
दोनों ओर 
बात हो रही...

03. संघर्ष 

हवाएँ चूमती बार-बार काटों को 
रेखाचित्र : उमेश महादोषी 

होंठ लाल गुलाब हो जाता 
जीवन से ऐसे ही 
प्यार हो जाता...

04. प्रलय 

आदमी के कोख़ से पैदा हुई सभ्यता 
बेटी है 
विदा हो जाएगी एक दिन 
जन्म लेगा आदमी...

05. ख्याति 

रोया तू 
मुस्कुराया आस-पास 
मुस्कुराया तू 
रोया आस-पास 
भीड़ में एक खास...
  • डॉ. बख्शी मार्ग, खैरागढ़-491881, जिला राजनांदगांव, छ.गढ़/मो.09424111454

Sunday, June 17, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 30                   जून  2018


रविवार  :  17.06.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



रघुनन्दन चिले 




01. तासीर 

सत्ता की तासीर ही
कुछ ऐसी है
दिल तो मिलते नहीं 
हाथ भी रुक जाते हैं।

02. नियति 

कागज़ की कश्तियाँ 
साहिल से 
टकरा नहीं सकतीं 
गलकर, डूबना और 
मिट जाना ही
रेखाचित्र :  विज्ञान व्रत 
उनका नसीब है। 

03. यादें - एक 

यादों से इस कदर
मोहब्बत न कर
बेइन्तहा कोई भी शै 
माकूल नहीं होती।

04. यादें - दो

यादों को सहेजकर रखिए 
यादें, जीवन पथ पर
जुगनुओं सा प्रकाश देतीं हैं, 

उल्लास भर देतीं हैं।

05. भाई-चारा 

भूख और फाँकों का
भाई चारा है
मुफलिसों का
मुट्ठी भर में 
गुज़ारा है।

  • 232,मागंज वार्ड नंरू 1, दमोह-470 661, म. प्र./मो. 09425096088

Sunday, June 10, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 29                   जून  2018


रविवार  :  10.06.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


राजवंत राज




01.

बस एक मुट्ठी
चबेने की ख़ुशबू
भूखी अंतड़ियों को
और कुलबुला गईं।

02.

आदम की तरह
फ़ितरत नहीं बदलता हूँ मैं
जख्म हूँ
अपने हर दर्द से
बहुत प्यार करता हूँ मैं।

03.

जिद है
सौ झूठ से दबा
एक सच बचाने की।

04.

रेखाचित्र : राजवंत राज 
सुकूं से हम भी रहते थे
सुकूं से तुम भी रहते थे
फिर क्यूँ ये हादसे सड़कों पे
बेमतलब, बेपनाह हो गए ?

05.

फिक्र करके
तमाम सियासी मसलों का
एक चादर फिर हरे नोट की
आदतन बिछा ली उसने।

06.

कंटीली तारों पर
बैठते हैं परिंदे
हम कहाँ सँभलेंगे
सँभलना तो आता है उन्हें।

  • 201, सूर्या लेक व्यू अपार्टमेंट, विकल्प खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226010, उ.प्र./मो. 09336585211

Sunday, June 3, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 28                   जून  2018


रविवार  :  03.06.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


जयप्रकाश श्रीवास्तव




01. बदलाव

परिन्दे
अब नहीं उड़ान भरते
खुले आकाश में
बेरहम हवा भी
करने लगी है
उनका शिकार

02. कविता का समय

समय के पन्ने पर
नहीं लिखी जाती
कोई कविता
कविता के दायरे से
बहुत आगे
निकल गया है समय

03. युद्ध

संधियाँ 
होती नहीं हैं
निरंतर जीवन में
लड़ा जा रहा है
एक युद्ध

04. संयोग

नदी के चंगुल से

छायाचित्र  : उमेश महादोषी 
छूट आई नाव
तटों पर बैठ
गाती है
लहरों का गीत

05. झूठा सच

बगुले की चोंच
डूबती नहीं
पोखर के पानी में
देखकर मछलियाँ
हो गई हैं
उदास

  • आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी, शक्तिनगर, जबलपुर-482001, म.प्र.