Sunday, December 30, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 52                   दिसम्बर 2018


रविवार : 30.12.2018

 ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


उमेश महादोषी






01.

उत्सव 
मैं जरूर मनाता
यदि
दो श्वाँसो के बीच
थोड़ा-सा समय मिल जाता!

02.

चेहरे का उत्सव है
और तुम 
पीठ पर सवार हो
रेखांकन : डॉ. सुरेंद्र वर्मा  
मेरा उत्तर है-
तुम किसका सवाल हो!

03.

आज तो देर हो गई है
तुम कल आना
रात ओढ़ लेने के बाद
सूरज से मिलना
अच्छा नहीं लगता!

  • 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004

Sunday, December 23, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 51                  दिसम्बर 2018

रविवार : 23.12.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

शैलेष गुप्त ‘वीर’








01.

‘मोबाइल’ के लिए
‘नेटवर्क’ जैसे था,
उन्हें अपने होने का
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 
एहसास
कुछ ऐसे था!

02

चीटियाँ भी
पानी में
चलने लगी हैं
बड़े-बड़े मगरमच्छों को
निगलने लगी हैं

  • 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005

Sunday, December 16, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 50                दिसम्बर 2018


क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श क्षणिका विमर्श }


रविवार : 16.12.2018


        ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
       सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


चक्रधर शुक्ल










01. प्रार्थना में

प्रार्थना में
कौन जादू कर गया
मन 
प्रसन्नता से भर गया!

02. शीतलहर
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 


दिन में 
सड़कों पर सन्नाटा
कोहरे की चादर
शीतलहर लपेटे
मार रही चाँटा।

  • एल.आई.जी.-01ए, सिंगल स्टोरी, बर्रा-06ए कानपुर-208027 उ. प्र./मो. 09455511337

Sunday, December 9, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 49                  दिसम्बर 2018


नोट : मित्रो, स्तरीय क्षणिकाएँ पर्याप्त संख्या में न मिल पाने के कारण पिछले 14 अक्टूबर 2018 की पोस्ट के बाद 02 दिसम्बर तक के किसी भी रविवार को हम क्षणिकाएँ पोस्ट नहीं कर पाए। आज की पोस्ट के साथ हमने निर्णय लिया है क जब तक पर्याप्त संख्या में ़क्षणिकाएँ उपलब्ध नहीं होतीं, तब तक हर रविवार को किसी एक क्षणिकाकार की दो या तीन क्षणिकाएँ ही पोस्ट की जायेंगी ताकि यह क्रम बना रहे। 

रविवार : 09.12.2018

 ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’







01. भविष्य 

सूखी नदी के किनारे पड़ा 
बोतल बंद पानी 
गगन में चक्कर लगाते परिंदे 
धरा पर 
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
मनुष्य के माथे पर बल


02. निराशा 

कैलेंडर से निकलकर
भविष्य के गर्त में 
ऱोज कूदती एक तारीख 
रह जाता जीवन फड़फड़ाकर.

  • डॉ. बख्शी मार्ग, खैरागढ़-491881, जिला राजनांदगांव, छ.गढ़/मो. 09424111454

Sunday, October 21, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 48                  अक्टूबर 2018

रविवार : 21.10.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा



01.

घूम रहा है 
समय का पहिया 
अब, चलोगे?
कि, 
यहीं मिलोगे?

02.

करते रहे 
कोशिशें
और छा गए
ऐसे-
हौसलों के हाथों में
शिखर आ गए।

03.

ओढ़े बैठे थे
खुश रंग चादर
धुल गई
ज़रा सी हवा और ..
पहली बारिश 
झूठे मचानों की
कलई खुल गई।

04.

मिले तो ‘वो’ थे
रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 

खूब तड़पाती है 
दिल को जुदाई 
कैसा इन्साफ!
किसी की खता थी ,
किसी ने सजा पाई।

05.

दूर से दिखती है 
व्यवस्था
नई-सी, चाक-चौबंद 
लगाकर गए हैं वो 
कायदे से वायदों के 
रंगीन पैबंद!

  • एच-604, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

Sunday, October 14, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 47                  अक्टूबर 2018

रविवार : 14.10.2018

 ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शील कौशिक 




01. अपना दुःख छोटा लगेगा

फुर्सत में कभी  
पत्थरों की कहानी  
उनकी जुबानी सुनना 
अपना दुःख तुम्हे  
बहुत छोटा लगेगा    

02. पहाड़ की गोद में 

हमने सुना है  
पहाड़ की गोद में कुदरत रहती है 
वहीं पनपती, फलती-फूलती है 
जैसे पिता की गोद में  
बेटी जन्नत बनकर रहती है

03. देवों का घर

पहाड़ के पास  
आत्मीयता की दिव्य आँच और उजास है  
तभी तो बने बैठे हैं वो  
देवों का घर       

04. खुली किताब जैसा है  

खुली किताब जैसा है पहाड़ 
लिखा है जिसमे 
इसके जीवट होने का रहस्य 
और इसके सुख-दुःख भी     

05. जो मौन हैं

मेरी दादा और पहाड़ 
कभी-कभी मुझे एक जैसे लगते हैं 
जो मौन हैं अनगिनत चोटों के बावजूद      

06. प्रियतमा नदी से 

एक दिन निराश, हताश, दुःखी पहाड़ 
अपनी प्रियतमा नदी से बतिया रहा था 
नदी रोते हुए बहती हुई चली जा रही थी  

07. समस्त कीमती सामान

झील में आकाश सजा लेता है 
रात को अपनी दुकान 
रखकर अपना समस्त कीमती सामान 
चाँद-तारे के रूप में   

08. वासंती हवा को देखो
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 


जरा वासंती हवा को तो देखो  
खुशबू में नहाई 
युवती-सी बौराई 
किसी की बात पर कान न धरती  
बहती फिर रही है    

09. फूलों की बारात

ऋतुराज वसंत ले आया 
फूलों की बारात
पीली चुनर ओढ़ सुहागन बनी धरा 
इठला रही है   

10. जादूगर चाँद 

जादूगर बना चाँद  
नचाता है लहरों को अपने इशारों पर 
और लहरें कठपुतली बनी 
उठती-बैठती हैं 
समुद्री आसन पर 

  • मेजर हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, पार्ट-1, सिरसा-125055, हरि./मो. 09416847107  

Sunday, October 7, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 46                  अक्टूबर 2018

रविवार : 07.10.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शशि पाधा




01.

धुँधला ही रहता है 
मेरा चश्मा 
साँसों में नमी जो रहती है 
आँखों में रहे तो 
सब जान जाएँगे।

02.

लोग पूछते हैं 
हवाएँ क्यों साँय-साँय करती हैं 
कराहती हैं 
तडपती हैं 
करवटें बदलती हैं 
जाने कौन सी बात 
उन्हें आहत कर जाती होगी।

03.

ठूँठ से हैं पेड़ अभी 
कोई पत्ती नहीं  
कोई रंग नहीं 
वसंत आएगा  
हरे हो जाएँगे 
आदमी क्यों नहीं 
होता है फिर से, हरा 
उम्र वसंत क्यों नहीं हो जाती ????

04.

मुझे पूर्णता की आस नहीं 
मैं अदृश्य में
तुम्हें 
ढूँढना चाहती हूँ 
मैं राधा नहीं 
मीरा होना चाहती हूँ।

05.

रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 
तुमने 
प्रेम का फ़लसफ़ा नहीं पढ़ा 
मुझे  
गणित का गुणा-भाग 
नहीं आया 
फिर भी हम  
जिन्दगी का 
बही-खाता 
लिखते रहे 
लिखते रहे...

06.

मैंने अपनी सोच के शब्द कोष से 
हाँ और ना- दोनों ही शब्द 
मिटा दिए हैं 
अब मैं इच्छा मुक्त्त हूँ!

07.

मेरे आँगन के आकाश में अब 

इन्द्रधनुष 
दिखाई नहीं देता 
शायद 
मेरे हिस्से की धूप से 
बादल
अब रूठ गया है।

08.

अच्छा ही होता होगा 
खुद को 
दूसरों की कसौटी पे 
परखना  
नहीं तो 
आत्मस्तुति में ही 
उम्र गुज़ार देते।

09.

आसान नहीं था 
कुछ रिश्तों को 
समझना-परखना 
ख़रीद लिया है मैंने 
एक आतशी शीशा 
अब 
कितना साफ़ है 
सब कुछ!

  • 174/3, त्रिकुटानगर, जम्मू-180012, जम्मू-कश्मीर

Sunday, September 30, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 45                  सितम्बर 2018

रविवार : 30.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



भावना कुँअर





01. दर्द

जब दर्द हद से गुजरता है ...
तो लोग कहते हैं ग़ज़ल होती है
वो क्या जाने ...
कि दर्द के दरिया में पड़े...
शब्द के सीने से
निकलने वाली चीत्कार
कितनी असहनीय होती है।

02. एक और दीपक

रोशन होता
एक और दीपक 
इस दीपावली में
हवा का झोका
उड़ा ले गया संग
जाने  क्यों  बेख्याली में।

03. सिलवटें

चेहरे पर पड़ी सिलवटें
आज पूछ ही बैठी
उनसे दोस्ती का सबब
मैं कैसे कह दूँ कि
तुम मेरे 
प्यार की निशानियाँ हो।

04. तोहफ़ा

गुनहगार हैं हम
जो ख़ुद को 
बीमार पड़ने से न रोक पाए...
तभी तो तेरा 
तिरस्कार और नफ़रत
तोहफ़े में ले चुप चले आए।

05. तस्वीर

छायाचित्र : उमेश महादोषी 
तुम्हारे पर्स की तहों में
लिपटी रहती थी यादें बनी
मेरी  नन्ही  निशानियाँ...
आज वहाँ किसी की
तस्वीर नज़र आती है।

06. उड़ान

उड़ान...
थककर चूर हो जाती
पर जरा न बैठ पाती 
लगी रहती नाम सार्थक करने में
बस फिर...
उड़ती ही जाती...

  • सिडनी, आस्ट्रेलिया
  • भारत में : द्वारा श्री सी.बी.शर्मा, आदर्श कॉलोनी, एस.डी.डिग्री कॉलिज के सामने, मुज़फ़्फ़रनगर(उ.प्र.)/ईमेल : bhawnak2002@gmail.com

Sunday, September 23, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 44                  सितम्बर 2018

रविवार : 23.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना  प्रदीप




01. श्रृंगार 

नागफनी ने 
अपने बदन को 
कैसा सजाया 
न दिल टूटा 
न कोई 
पास आया !

02. ज़िक्र 

गोरी बदलियों को
फ़िक्र है 
आज 
काले बादलों में 
उनका ज़िक्र है!!

03. अश्क़ 

हाँ मुझे रश्क़ 
होता है 
जब तेरी आँखों में 
किसी के 
नाम का एक 
अनबहा 
अश्क़ होता है!

04. सीख 

माँ ने कहा था-
‘‘बेटी 
सब सहना 
और हाँ.... 
‘अच्छे से’ रहना!!’’
रेखाचित्र : कृष्ण कुमार अजनबी 

05. खूबसूरत  मंज़र 

खूबसूरत मंज़र  था 
कल चाँदनी रात!
इक बेल लिपट गई थी 
पौधे से जैसे   
शरीक-ए-हयात!

06. कसौटी 

ये रात की
कैसी कसौटी है?
एक तो बिन चाँद के...
उस पर 
आँसुओं में नहाकर 
लौटी है!

  • मकान-32, गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर-144013, पंजाब

Sunday, September 16, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 43                  सितम्बर 2018

रविवार : 16.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



केशव शरण




01. कीचड़ बरदाश्त

बेदर्द मौसम की
बेशर्मी नहीं
कीचड़ बरदाश्त है
गली का
गर्मी नहीं

02. हरा सूरज

मैं चलता जाता
जलती धूप में
सड़कों पर
अपना रक्त जलाता
और सोचता
कोई पेड़ आता
लिये घना साया
नहीं तो सूरज
हरा हो जाता

03. सुन्दर चेहरा

सुन्दर 
इतना सुन्दर चेहरा
कि देखकर
प्यार उमड़ने लगता
लेकिन जाने क्यों यह
दिल को झटका देता है
मुखौटा लगा लेता है।

04. बालक

छोटा है या बड़ा
वह अपने पैरों पर खड़ा
कर लेता है परिक्रमा
चारपाई की
जो है उसकी माई की।

05. नदी के किनारे

बहती नदी के किनारे
बैठे मिलेंगे बहुत
ठहरी नदी के किनारे
ठहरता नहीं कोई
वह किसी और दृश्य की ओर बढ़ जाता है
है यह अद्भुत !

06. लतर : 1
रेखाचित्र : बी मोहन नेगी 


चढ़ने ही
जा रही थी लतर
कि मायूस हो गई

काट दिया गया
उसके सहारे को
सूखा पेड़ जानकर

07. लतर : 2

ऊँचे से ऊँचे 
पेड़ के लिए
ऊँचा है टावर
मगर लतर के लिए नहीं
जो बादलों को छूना चाहती है
आगे बढ़कर

  • एस 2/564, सिकरौल, वाराणसी-221002/मो. 09415295137

Sunday, September 9, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 42                  सितम्बर 2018

रविवार : 09.09.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


अमन चाँदपुरी




01. धूप का इंतजार

तुम्हें धूप दिखे
तो बता देना उसे
मेरे घर का पता
कहना,
बहुत से नहाए हुए कपड़े
सूखने को पड़े हैं
तुम्हारे इंतजार में।

02.

घास के नुकीले बदन पर
पीठ के बल लेटा था मैं
मैंने देखा
फ़लक मेरे ऊपर सोने की 
कोशिश कर रहा था। 

03. किसान

रात में
खेत में
ठंड से
ठंडा पड गया
किसान
लोग उसकी
आँखों में
डूबी फसल
देख रहे हैं

04. समय

समय के पाँव
भारी हैं
उसे तेज चलना
न सिखाओ
करेला नीम चढ़ जायेगा


रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 
05. जिन्दगी

जिन्दगी
बहुत कठिन हैं
रोटी बनाने जितनी

06. लंगड़ा

चलते हुए गिरना
मुझे कहाँ भाता है
जो भी देखता है
लँगड़ा कह जाता है।

  • ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर प टांडा, जिला- अम्बेडकर नगर-224230, उ.प्र./मो. 09721869421

Sunday, September 2, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 41                   सितम्बर 2018

रविवार : 02.09.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


सुनीता काम्बोज






01.

तपती रेत पर 
रुकते नहीं कदम
अगर मुझे रोकना है 
तुम बनों शीतल छाया ।

02.

सागर के दर्पण में
देख अपना विस्तार
नभ मुस्कुराया
रात्रि में केवल
चाँद को पाया
भोर में फिर खुद को निहार
हुआ बेकरार
यह कैसा छलावा
फिर भी इस मोह से
निकल न पाया ।

03.

कुल पर कालिख पोतकर
तुम श्यामपट मत बनाओ?
और वासनाओं के चॉक से
मत लिखो 
फिर कोई कहानी

04.

बारीक दरारों को
नजरअंदाज करने से
बन जाती है वह खाई
जिसे भरना
मुश्किल ही नहीं
नामुमकिन होता है।
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 


05.

अनपढ़ माँ
बाँच देती है
मेरी आँखों का
हर आखर
मैं उसकी उलझनें
पढ़ नहीं पाती
फिर भी 
पढ़ी लिखी कहलाती।

  • मकान नंबर-120, टाइप-3, जिला संगरूर, पंजाब / मो. 09464266415

Sunday, August 26, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 40                  अगस्त 2018

रविवार : 26.08.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



सुरेन्द्र वर्मा





01.

घटता बढ़ता रहता है 
चाँद 
टूटते तो बस 
सितारे ही हैं 

02.

वही गीत 
फिर से गाओ 
कि नींद आ जाए 

03.

चिड़ियों के कलरव से 
पट्टियाँ हिलती हैं-
आओ, मेरी डाल पर बैठो! 

04.

यह दर्द है 
शरीर का ताकत नहीं 
जो चोट खाकर बाहर आ जाए 

05.

अभी तो कच्चा है 
हाथ थाम कर चलता है 
चलना सीख ले फिर रुकता नही 
प्यार 

06.

तुम तो चली गईं 
लेकिन यादों की महक 
यहीं कहीं मंडराती रहती है 
आसपास 

07.

यादें कहीं गुम न हो जाएँ 
कभी उनकी भी 
सुध ले लो 

08.
छायाचित्र : श्रद्धा पाण्डे

खुशगवार है खुश्बू 
फूल को 
डाल पर ही इतराने दो 

09.

मैं मौन था 
लेकिन शब्द गूँजते रहे 
कविता में ढलकर 
कागज़ पर उतरते रहे

  • 10 एच आई जी, 1, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद-211001, उ.प्र./मो. 09621222778

Sunday, August 19, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 39                  अगस्त 2018

रविवार : 19.08.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

ज्योत्स्ना शर्मा





01.

जतन से बनाया 
फिर.. 
खुद ही तोड़ देते हो 
हे सारथी!
समय के रथ को 
विनाश के पथपर 
क्यों मोड़ देते हो।

02.

अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध मन
मगन हो गई,
लो आज धरती
गगन हो गई।

03.

मौन भावों के
जब उन्होंने
अनुवाद कर दिए
किसी ने भरा प्रेम
किसी ने उनमें 
आँसू भर दिए।

04.

तरंगायित है
आज वो 
ऐसी तरंगों से
भर देगा जग को
प्यार भरे रंगों से।

05.

नन्ही पलकों पर 
छायाचित्र : रोहित काम्बोज

सपनों का 
बोझ
बड़ा भारी है... 
उठाना लाचारी है।

06.

बूँद-बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया।

  • एच-604, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053