Sunday, December 29, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /104                  दिसम्बर 2019


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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 29.12.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

ज्योत्स्ना प्रदीप


01. ओज़ोन का जिस्म

इन्सान ने
ऊँचाइयों की
ये कैसी पकड़ी राह
ओज़ोन का कोमल जिस्म
होने लगा स्याह !

02. मन-मित्र

काश !
तुम अहंकार की
ऊँचाई से उतरकर
बन जाते 
मन के मित्र...
नभ से गिरी एक 
बूँद भी माटी में 
समाकर
फैलाती है इत्र!
चित्र : प्रीति अग्रवाल 

03. यादें

जब पिता की याद 
आती है, 
रौशनदान में 
झाँकते तारे से, 
ये आँखे 
बतियाती हैं !

  • मकान 32,गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड जालंधर-144013, पंजाब/मो. 06284048117

Sunday, December 22, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /103                  दिसम्बर 2019


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रविवार : 22.12.2019
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नरेश कुमार उदास






01,

नदियाँ 
जब भी तोड़ती हैं
किनारे
हुंकारती हैं
तीव्र गति से बहती हैं
तो कितना कुछ
बहा ले जाती हैं।

02.

पहाड़ की धूप
भली लगती है
रेखाचित्र :
रीना मौर्या "मुस्कान"
लेकिन यह
सबको तरसाती है
कभी-कभी आती है
आँख-मिचौली खेलती
चली जाती है।

03.

मेरे भाग्य में ही
लिखा होगा दर्द
होगी इतनी सारी पीड़ा
तभी मेरे भीतर
दर्द का सागर बहता रहता है
हरदम।
अकाश-कविता निवास, लक्ष्मीपुरम, सै. बी-1, पो. बनतलाब, जि.  जम्मू-181123 (ज-क)/मो. 09419768718

Sunday, December 15, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /102                  दिसम्बर 2019


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रविवार : 16.12.2019
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कमलेश सूद







01. 

उस विनाशकारी भूकंप के बाद 
वृद्धा ढूँढ़ रही है कुछ 
मलबे में बचा सामान 
जो मिटा सके भूख उसकी 
और छुपा सके लाज! 

02.

मन करता है कभी-कभी 
तितलियों संग उड़ जाऊँ 
हवा-सी बह जाऊँ कभी 
बच्चों-सी खेलूँ और 
उचककर चाँद को 
अपनी मुट्ठी में ले लूँ कभी 
रेखाचित्र : (स्व.) बी. मोहन नेगी 


03. 

कविता गाती है 
कुलबुलाती है अंतर में 
उमड़-घुमड़कर बेचैन करके 
तड़पाती है 
और धीरे से फिर 
कागज पर उतर आती है। 

  • वार्ड नं. 3, घुघर रोड, पालमपुर-176061, काँगड़ा, हि.प्र./मो. 09418835456


Sunday, December 8, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /101                  दिसम्बर 2019


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रविवार : 08.12.2019
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शिव डोयले






01. नदी 

यह कैसी 
बिडंबना है 
विधाता 
नदी चढ़ती है 
तो सब 
देखने आते हैं 
सूखती है तो 
कोई नहीं आता। 

02. आगाह 

मैं फूल पर 
नहीं लिखूँगा 
कविता 
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
तितलियों का 
डर लगता है। 

03. सोचना 
उस फसल के 
बारे में सोचना 
अब जरूरी 
हो गया है 
जिसे 
बोता कोई और 
काटता है 
कोई और!


  • 19, झूलेलाल कॉलोनी, हरीपुरा, विदिशा-464001, म.प्र./मो. 09685444352

Sunday, December 1, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /100                  दिसम्बर 2019


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रविवार : 01.12.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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विभा रश्मि







01.
आँखों का पानी 
बहाने के बाद 
अहसास हुआ
नादानी का।

02.
नवपल्लवों पे 
हँस-हँस झूली
रेखाचित्र : डॉ.  सुरेंद्र वर्मा 

बूँदें बरखा  
मन में फूलीं।

03.
पिय प्यारी
ताकती राह 
अटारी पर कागा
काँव-काँव  बोल
बढ़ाए चाह। 

  •  एस-1/303, लाइफस्टाइल होम्स, होम्स एवेन्यू, वाटिका इण्डिया नेक्स्ट, सेक्टर 83, गुड़गाँव-122004, हरि./मो. 09414296536

Sunday, November 24, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 99                 नवम्बर 2019


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रविवार : 24.11.2019
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जयसिंह अलवरी 




01. घुटन

बन्द मकानों में
अब जिन्दगी
पल-पल घुटती है
कभी दरवाजे
और कभी छत से
धुँआँ की रेख उठती है!

02. वे जानते हैं

दिल में दर्द
आँखों में आँसू
और हाथों में हैं
छाले जिनके
वे जानते हैं-
तड़प, घुटन, सिसक 
सबको
क्योंकि- जीने के लिए
वे रोज इन्हें सहते हैं!
रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 

03. जब-जब

जब-जब
रावण का पुतला
जला है
असली रावण हँसा है
और ताल ठोंक के
निर्भय
सबके बीच बसा है!

  • न्यू दिल्ली हाउस, निकट बस स्टैंड, सिरूगुप्पा-583121, जिला बेल्लारी, कर्नाटक/मो. 09886536450

Sunday, November 17, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 98                 नवम्बर 2019


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जेन्नी शबनम




01. चकमा

चलो आओ 
हाथ थामो मेरा 
मुट्ठी जोर से पकड़ो 
वहाँ तक साथ चलो 
जहाँ ज़मीन-आसमान मिलते हैं 
वहाँ से सीधे नीचे छलाँग लगा लेते हैं 
आज वक़्त को चकमा दे ही देते हैं!


रेखाचित्र : डॉ. संध्या तिवारी 
02. उजाला पी लूँ 

चाहती हूँ दिन के उजाले की
कुछ किरणें
मुट्ठी में बंद कर लूँ,
जब घनी काली रातें
लिपट कर डराती हों मुझे
मुट्ठी खोल
थोड़ा उजाला पी लूँ,
थोड़ी-सी
ज़िन्दगी जी लूँ!

  • द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल-5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-110016


Sunday, November 10, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 97                 नवम्बर 2019


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वीणा शर्मा वशिष्ठ






01. रेशम धागा

नेह के धागे
बदल गए
हाँ, 
अब प्रेम भाव भी
रेशम से
चाँदी हो गए।

02. मुठ्ठी में वक्त

सोचा था
वक्त को
मुठ्ठी में पकड़ लूँ
पर
ना मुठ्ठी वैसी रही
चित्र :  प्रीति अग्रवाल 
न ही वक्त

वो रेत बन फिसलता ही रहा।

03. दीए की रोशनी

पैसों की चमक से
अब रिश्ते बुझने लगे
दीये की रोशनी
ट्यूब लाइट से
बेहतर जगमगाती थी।

  • 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 07986249984

Sunday, November 3, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 96                 नवम्बर 2019


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रविवार : 03.11.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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राजेश ’ललित’ शर्मा








01.

ख़ामोशियों ने इक
दी है गहराइयों से हूक
किसी ने सुनी क्या!!
या फिर से रह गई
अनसुनी दास्ताँ मेरी!

02.

टूटकर बिखरना
बहुत हुआ अब
समेट लो फिर 
वजूद को अपने 
सफ़र लंबा है
रुकेगें पड़ावों पर
ये टुकड़े काम आयेंगे।

03.

मुद्दत हुई
आइने को चेहरा देखे
मुद्दत हुई 
चेहरे को मुखौटा ओढ़े; 
ये नज़रें चुराये हैं
रेखाचित्र : अनुभूति गुप्ता 
वजह क्या है?
पूछना आइने से
ज़रा चुपके से
आइने ने छिपा रखे हैं
चेहरे दर चेहरे।

04.

ये दाग जो दिल पर लगे हैं
जनाब, उम्र भर सुलगे हैं
भीतर ही भीतर जले हैं
कभी तुम उसको छले हो
कभी वो तुमको छले हैं।

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

Sunday, October 27, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 95                 अक्टूबर 2019


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रविवार : 27.10.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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उमेश महादोषी



01.

टूटे दिये
जुड़ जायें
और 
भोले बाबा
विष 
पचाएँ
तब कहीं 
हम दीपावली मनाएँ!

02.

धुएँ का विष 
साँसों में भर रहा है
संकल्प है मगर
जीवन का
एक दीपक
फिर भी
जल रहा है!
रेखाचित्र :
कमलेश चौरसिया
 

03.

हवा कराहती है
आकाश रोता है
दीपक 
दोनों के 
आँसू ढोता है
प्रकाश के आँगन में
अब
ऐसा ही होता है!

  • 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004