समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03/332 मई 2024
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
चाहा था कभी
समुद्र में तैरूँगी
क्या पता था-
फिर उससे उबर न पाऊँगी!!
02.
उसने अपनी ही कही छायाचित्र : उमेश महादोषी
मेरी कभी न सुनी
न ही मुझ पर विश्वास किया
अब अपने ही हाथों
माथे से सिर टिका
घुमावदार सीढ़ियों पर
धूप में बैठा तप रहा है।
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