Sunday, July 28, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद




समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 82                जुलाई 2019


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01. समकालीन क्षणिका विमर्श क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 28.07.2019

        ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
       सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


इन्द्र देव गुप्ता








01.

चिलचिलाती धूप में 
भटकती तेरी यादें  
किसी थके डाकिये की तरह,
जो हर पल तेरे लिखे 
दर्द की 
दे रहीं हैं चिठ्ठी  

02.

ना भाव ना संवेदना  
रात दिन नुकीले शब्दों का पथराव
देते रहे घाव ही घाव  

03.

रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 
होगे तुम छाता, 
पर मैं रही भीगती रात दिन 
खुद को तुम रहे बचाते 
भरते चले गए 
दर्द के बही खाते

04.

बदनाम बस्ती की सड़ांध भरी 
हवा का हर झौंका  
एक गंदी गाली है, 
भँवरे फिर भी समझते  
यहाँ बड़ी खुशहाली है 

  • बी-31, जीएफ, साउथएण्ड फ्लोर्स, सै. 49, गुरुग्राम-122018, हरियाणा/मो. 08130553655

Sunday, July 21, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 81                जुलाई 2019


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रविवार : 21.07.2019

        ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
       सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


जेन्नी शबनम




01. बेसब्र इंतज़ार 

कितने सपने कितने इम्तहान 
अगले जन्म का बेसब्र इंतज़ार,
कमबख्त ये जन्म तो ख़त्म हो!

02. वक्त मिले न मिले 

जो भी लम्हा मिले
चुन-चुनकर बटोरती हूँ,
दामन में अपने
जतन से सहेजती हूँ,
रेखाचित्र : (स्व) बी. मोहन नेगी 
न जाने फिर कभी
वक्त मिले न मिले !

03. ख़ुद को बचा लाई हूँ

कुछ टुकड़े हैं, अतीत के
रेहन रख आई हूँ
ख़ुद को, बचा लाई हूँ। 

साबुत माँगते हो, मुझसे मुझको
लो, सँभाल लो अब
ख़ुद को, जितना बचा पाई हूँ । 

  • द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल-5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-110016

Sunday, July 14, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 80                जुलाई 2019


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रविवार : 14.07.2019

        ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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चिन्तामणि जोशी 







01. नियत

मुँडेर पर दाने
व्यर्थ ही क्यों बिखेरता है
रोज
लेकर ओट
कि चिड़ियाँ तो 
कबके भाँप चुकी
तेरी नियत का खोट।

02. ताला

दिन रात चौकसी की
खूँटे पर टँगा रहा
कसम है फर्ज की
जो झपकी भी ली हो
मैंने सोचा भी न था
कि चाभी 
रेखाचित्र :
(स्व.) पारस दासोत
स्वयं खो कर आओगे
गुस्सा मुझ पर उतारोगे।

03. नियत

उस आदमी की
नियत के क्या कहने
प्रकृति का आक्रोश सह
लाश में तब्दील
आदमी के अंग काट
निकाल रहा है गहने।

  • देवगंगा, जगदम्बा कॉलोनी, पिथौरागढ-262501, उ.खंड/मो.  09410739499

Sunday, July 7, 2019

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 79                 जुलाई  2019


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रविवार : 07.07.2019

        ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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पुष्पा मेहरा 







01.       
लहरों ने 
शिलाओं से टकराने की ठान ली 
चलीं, उठीं, टकराईं, चौंकीं
उछलीं, रास्ता खोज बढ़ती गईं... 

02.

विश्वास के आधार पर 
मन्दिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों में 
ईश्वर अपना प्रतिरूप बदल लेता है 
पर अपनी सत्ता नहीं बदलता

03.
बंद झरोखों की झिर्रियों से  
बहने वाली रौशनी को 
एक दिन समन्दर बनने का 
इंतज़ार है            

  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598